बकौल हजारी प्रसाद द्विवेदी, करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचने वाला इतिहास के भयंकर रथचक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वह हांकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
ऐसे बेईमान को फांसी दो
केतन देसाई यानी बेईमानी की दुनिया का एक और नटवरलाल। लेकिन बाकी और इनमें एक फर्क है। यह शख्स मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) का अध्यक्ष है। एमसीआई अर्थात देश के बीमार लोगों की सेवा के लिए डाक्टर तैयार करने वाली संस्थाओं को मान्यता देने या उसे कैंसिल करने की अधिकृत संस्था। एमसीआई का काम मेडिकल कालेजों को मान्यता देने का होता है। वह यह देखती है कि जो संस्था मेडिकल कालेजों को मान्यता प्रदान करती है। वहां मेडिकल शिक्षा के लिए न्यूनतम आवश्यक संसाधन हैं या नहीं मसलन, लैब, योग्य एवं विशेषज्ञता प्राप्त शिक्षक, बिल्डिंग इत्यादि। यदि ये सब चीजें नहीं हैं तो यह माना जाता है कि उस संस्था में मेडिकल शिक्षा संभव नहीं है। इसलिए मान्यता नहीं दी जा सकती। इन सबका फैसला एमसीआई के अध्यक्ष और उसकी समिति को लेना होता है। इधर कुछ सालों से एमसीआई का रुतबा काफी बढ़ा है। वजह, साफ सरकार की एक नीति है। पहले मेडिकल और उच्च शिक्षा केवल सरकारी हाथों में हुआ करती थी। तब पूरे देश में मेडिकल कालेजों की संख्या उंगलियों पर गिनी जाने लायक थीं। 80 के दशक में उच्च शिक्षा को निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दिया गया। तब से निवेशकों के लिए यह बहुत कमाऊ क्षेत्र हो गया है। उसमें भी मेडिकल, इंजीनियरिंग और व्यावसायिक संस्थान तो अनवरत सोना देने वाली मुर्गियां हैं। इस समय देश में 273 मेडिकल कालेज ऐसे है, जिन्हें एमसीआई की मान्यता प्रप्त है। इसी मान्यता में बेईमानी के सारे राज छिपे हैं। निजी संस्थाओं के संचालकों के जरिये इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार की बैतरणी बह रही है। बिना एक तिहाई संसाधन जुटाए तमाम संस्थाएं मेडिकल और इंजीनियरिंग के कोर्सेज चला रही हैं। इसके लिए नियामक संस्थाओं के अध्यक्षों और समिति के सदस्यों को रिश्वत की मोटी रकम दे दी जाती है। ऐसे ही एक मेडिकल कालेज की मान्यता के सिलसिले में केतन देसाई को दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेते धर लिया गया। सीबीआई इस बात का पता लगाने में जुटी है कि केतन के पास कितनी नामी-बेनामी धन और संपत्तियां हैं ताकि उनके बीते कारनामों का अंदाजा लगाया जा सके। फिलहाल अभी तक यह अंदाज लगा पाना मुश्किल हो रहा है कि अपने अब तक के कार्यकाल में केतन देसाई ने कितने अरब रुपये कमाए हैं। खबरें तो यहां तक हैं कि उन्होंने अब तक दो हजार करोड़ रुपये की संपत्ति कमाई है। गुजरात के एक साधारण शिक्षक का बेटा एक मेडिकल कालेज में शिक्षक की नौकरी करके तो इतना धन सपने में भी नहीं इकट्ठा कर सकता। यहां जान लेना जरूरी है कि केतन देसाई अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कालेज में यूरोलोजी में परास्रातक करने के बाद वहीं विभागाध्यक्ष के रूप में तैनात हैं। एक पखवारे में महज एक बार वहां छात्रों को उनका दर्शन होता है। लेकिन जुगाड़ ऐसी कि सर्वश्रेष्ठ शिक्षण का बीसी राय अवार्ड भी उन्हीं के नाम आया है। स्कूटर से चलकर अपने शिक्षण कैरियर की शुरुआत करने वाले केतन के पास अहमदाबाद में एक बंगला है जिसकी कीमत करीब 10 करोड़ बताई जाती है। सवाल यह नहीं कि रिश्वत से कितने करोड़ रुपये कमाए गए, इससे भी बड़ा सवाल है कि ईमान किस नाम पर डिगा। जिस देश में गुरुओं ने अपना और शिक्षा के लिए जंगल को स्थायी मुकाम चुना हो, अपना पूरा जीवन समर्पित करने के बाद भी बदले में एक कौड़ी न ली हो, वहां का एक शिक्षक जीवनदान देने वाली शिक्षा के नाम पर करोड़ों का घूस लेता हो, यह अकल्पनीय है। इस अपराध की सजा कम से कम एक हजार बार फांसी होनी चाहिए। कुछ साल पहले चीन में एक कैबिनेट मंत्री को घूस के अपराध में चौराहे पर खंभे में फांसी पर लटका दिया गया था। यह राजदंड था जो चीन की साम्यवादी सरकार ने उसके लिए निश्चित किया था। लोकतंत्र के नाम पर भारत में ऐसे दंड के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता। यहां तो आर्थिक अपराध को जघन्य की श्रेणी में नहीं रखा जाता। ऐसे में किसी सुधार की उम्मीद करना भी व्यर्थ है। घूस देकर मान्यता देने वाले संस्थानों से किसी ऐसे डाक्टर की कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह योग्य होगा और जीवन के लिए संघर्ष करते किसी मरीज को जीवन दे सकेगा।
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samayiki
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bahut achcha lekh hai thanks
जवाब देंहटाएंसुभाष जी, बहुत अच्छा लिखा है। इसी कारण आज भारत में शिक्षण संस्थान खोलने से लोग डरते हैं। मुझे तो यह समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर इस अकूत दौलत का वो करेगा क्या? लेकिन उसे कितनी सजा मिलती है इससे अधिक उस वैभव को भोगने वाले भी दोषी हैं और उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंकुछ साल पहले चीन में एक कैबिनेट मंत्री को घूस के अपराध में चौराहे पर खंभे में फांसी पर लटका दिया गया था।
जवाब देंहटाएंसुभाष जी-फ़िर यहां राज करने के लिए बचेगा कौन? आर्थिक असमानताएं नित्य बढ रही हैं, अपराधों का जन्म भी यहीं से हो रहा है।
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राम राम