बकौल हजारी प्रसाद द्विवेदी, करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचने वाला इतिहास के भयंकर रथचक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वह हांकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।
रविवार, 11 अप्रैल 2010
मस्तमौला था मेरा यार
कमलेश ही था उसका नाम। बड़ा मस्त और दिलफेंक। अगर वह किसी से मिल ले तो उसकी सारी हरारत समाप्त हो जाये। कहने को तो वह बनिया था लेकिन बनियागीरी से कोसों दूर था। अगर उसके पास पैसे हों तो वह हातिमताई बन जाता था। उसे इस बात की फिक्र नहीं रहती थी कि यदि यह पैसे खत्म हो जायेंगे तो क्या होगा। वह कल की तो सोचता ही नहीं था। उसके पिता कांग्रेस के बड़े नेता थे। पेठे का अच्छा खासा कारोबार था। जब वह कालेज में पढता था। उसकी हरकतें मज़ा तो दे सकतीं थीं परन्तु किसी को हानि नहीं पहुचाती थीं। कालेज के दिनों में वह एक छात्र संगठन यानि एन एस यू आई से जुड़ गया। घर पर सब कुछ था इसलिए वह बेफिक्री से नेतागीरी करता रहा। उसकी गाने बजाने और अभिनय में काफी रूचि थी इसीलिए वह इप्टा में शामिल हो गया। उस दौरान उसने कई नाटकों में भागीदारी की लेकिन वह मशहूर हुआ लोकगायक के रूप में। उन दिनों आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता पर शोध कर रहा था। उसी समय प्रख्यात रंगकर्मी सफ़दर हाशमी नुक्कड़ नाटक करते हुए काल के गाल में समां गए थे। उनकी शहादत से समूचा देश स्तब्ध रह गया। आगरा की सभी नाटक और साहित्यिक संस्थायों ने साझा मंच से उनकी स्मृति में शहर भर में नुक्कड़ नाटक और कवि सम्मलेन किये। इस साझा मंच में राजेश्वर प्रसाद, जितेंद्र रघुवंशी, हरिवंश चतुर्वेदी आदि शामिल थे। इसी दौरान मेरी कमलेश से मुलाकात हुई। सफ़ेद भकाभक कुरते पजामे में वह काफी स्मार्ट एवं सुदर्शन लग रहा था। उन दिनों उसके गीत लू लू तोहे पांच बरस न भूलू की पूरे आगरा में धूम मची हुई थी। दिवंगत वसंत वर्मा और कमलेश की जोड़ी ने आगरा को अपने क्रान्तिकारी गीतों की गायकी से आल्हादित कर दिया। इस दौरान उन्होंने स्वर्गीय राजेंद्र रघुवंशी रचित कई जनगीतों का गायन भी किया। उसी समय मेरी कमलेश सिंघल, वसंत वर्मा तथा सतीश महेन्द्रू से दोस्ती हुई। वह दोस्ती इतनी परवान पर पहुंची और हमारी दोस्ती के चर्चे चारों तरफ होने लगे। हमारी मंडली में कमलेश गायक, वसंत संगीतकार तथा सतीश अभिनेता और में यानि महाराज सिंह परिहार कवि था। किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए हम चारों पर्याप्त थे। किसी कारणवश कमलेश इप्टा से अलग हो गए और अपनी संस्था लोकरंग व मेरी संस्था इन्द्रधनुष को सक्रिय करने में जुट गए। उन्ही दिनों इन्द्रधनुष ने राजेंद्र मिलन रचित भीमाबाई होलकर खंडकाव्य पर आधारित नाटक का मंचन सूरसदन में किया। यह इन्द्रधनुष की पहली प्रस्तुति थी। इस नाटक का निर्देशन कमलेश सिंघल ने ही किया था। इस नाटक के परिकल्पनाकर थे हरी मोहन शर्मा साथी। जो अब संसार में नहीं हैं । वह बड़े मस्त आदमी थे। खाने पीने के शौक़ीन । मिठाई पर तो वे जान देते थे हालाँकि वह मधुमेह के मरीज़ थे फिर भी वह कभी अपनी इस बीमारी की चिंता नहीं करते थे। मरहूम उस्ताद अनवार खान हमारे नाटक में तबलावादक के रूप में कार्य कर रहे थे। इस नाटक में मैंने और राजेंद्र मिलन ने पहली बार अभिनय किया। इस नाटक में लगभग सभी कलाकार बिलकुल नए थे। यह नाटक काफी सफल रहा। अरे बात तो कमलेश के बारे में हो रहीं थी। मैं जाने कहाँ भटक गया। वह यारों का यार था। कलाकारों व कवियों के लिए उसका दालमोंठ और पेठे का दरबार हमेशा खुला रहता था। जब वह पी लेता था तो महिलाओं की जन्मपत्रियाँ खोलने लगता। तमाम की हिस्ट्री उसको पता थी। कौन किस का असली बाप है और जवानी में किसके किससे सम्बन्ध थे। उनकी किस्सागोई में रंडियों से लेकर कवि, रंगकर्मी, नेता, सेठ, पत्रकार सभी शामिल होते थे। उसकी नवीनतम जानकारियों से मैं तथा ताज प्रेस क्लब में मेरे अभिन्न मित्र उपेन्द्र शर्मा, कवि राज कुमार रंजन, अशोक सक्सेना सभी अवगत होते थे। वह दिल का बहुत उदार था। आगरा की कई नेत्रियों की उसने काफी मदद की थी। उसके भोलेपन अथवा उदारता का लाभ उठाने के लिए महिलाएं गरीब लड़कियों की शादी की झूठी बात करके उससे पेठा आदि मंगवा लेती थी फिर उन्हें मित्रो व रिश्तेदारों को अतिथि सत्कार के रूप में परोसतीं थी। लगभग ४५-५० वर्षा की आयु में भी उसकी हरकतें युवाओं जैसी होती थी। एकबार बल्केश्वर के मेले में उसने किसी को छेड़ दिया.कमलेश तो चलते बने लेकिन वसंत पकडे गए । मैंने बड़ी मुश्किल से वसंत को पुलिस के चंगुल से छुड्वाया। जैसे ही यह मामला ख़त्म हुआ कमलेश प्रकट हो गए। उस समय उसके चेहरे पर न तो अफ़सोस का भाव और न ही पछतावा। वह बोला यार मन नहीं माना। आज भले ही कमलेश हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उसकी शरारतें और मस्ती मन को स्पंदित करती है.
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vividh
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नहीं भूले जाते यार...ऐसे दोस्तों के लिए भूला जा सकता है संसार।
जवाब देंहटाएंआजकल और कोई काम नहीं है क्या दोनों लोगों के पास, खूब निठल्ला चिंतन चल रहा है।
जवाब देंहटाएंदोस्त दोस्त ही रहते हैं और जब बिछड़ते हैं तो बहुत याद आते हैं। आपने अपने दोस्त के बारे में अच्छी पोस्ट लिखी है।
जवाब देंहटाएंBEBAT BAT KO SALAM
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