बकौल हजारी प्रसाद द्विवेदी, करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचने वाला इतिहास के भयंकर रथचक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वह हांकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।
गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
सो रही है सरकार
आतंकवाद देश की बड़ी समस्या है। बाहर से भी देश में आतंकवादी निरंतर दाखिल हो रहे हैं और भीतर भी उनका दबाव लगातार बढ़ रहा है। जो लोग सत्ता में हैं, वे किंचित भी गंभीर नहीं हैं। हमारे नेता हर समस्या का समाधान अपनी जेब में रखते हैं। पूछ लीजिए तो लंबा-चौड़ा भाषण दे डालेंगे। चाहे महंगाई बढ़ने की समस्या हो या भ्रष्टाचार की, मिलावटखोरी हो या महिलाओं पर बढ़ता अत्याचार, सबका हल उनके बायें हाथ का खेल है। हमने समस्याओं के मूल में जाने, उनके कारणों की पड़ताल करने की आदत ही नहीं डाली है। आजकल पश्चिमी देश वैज्ञानिक प्रगति का पूरा लाभ उठा रहे हैं। अपने को सुरक्षित रखने में, देश को किसी भी खतरे से महफूज रखने में और अपने दुश्मनों की सटीक पहचान करने में वैज्ञानिक विधियां कारगर ढंग से इस्तेमाल की जा रही हैं। किसे नहीं मालूम कि ट्रेड-टावर ध्वस्त होने के बाद अमेरिका ने जिस तरह देश को एक सुरक्षित गढ़ के रूप में बदल दिया, उसी का परिणाम है कि वहां कोई बड़ी वारदात आतंकवादी नहीं कर पाये। इसके लिए तकनीकी जानकारियों और उपायों का पूरा इस्तेमाल किया गया। यही नहीं अवांछित लोगों को देश में घुसने से रोकने के लिए अमेरिका ने इतने कड़े उपाय किये कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और जाने-माने फिल्मी अभिनेता शाहरुख खान तक को हवाई अड्Þडों पर तलाशी देनी पड़ी। हमारे नेताओं ने मुंबई हमले के बाद भी अमेरिका से सबक नहीं लिया। हमारा खुफिया तंत्र इतना नाकारा है कि हेडली और राणा की भारी गतिविधियों की भनक भी हमें नहीं लग सकी। एफबीआई ने भारत को उनके बारे में बताया। हमारी सीमाएं हर आगंतुक के लिए खुली रहती हैं। कोई भी आये, यहां अपना काम पूरा करे और फिर चुपचाप निकल जाये। नक्सलवादियों के मामले में भी हमारी सरकारें इसी तरह का ढीला-ढाला रवैया अपनाती रही हैं। पश्चिम बंगाल से निकलकर वे आधा दर्जन राज्यों में पहुंच गये, जंगलों में अपने ठिकाने बना लिए, हमारे कान पर जूं तक नहीं रेंगी, हम चुपचाप तमाशबीन बने सब कुछ देखते रहे। अब जबकि वे बहुत मजबूत हो गये हैं और सरकार की नाक में दम करने की स्थिति में हैं, तब भी हमारी आंखें नहीं खुल रही हैं। छतीसगढ़ में जिस तरह नक्सलियों ने जवानों का सामूहिक कत्लेआम किया, वह हिला देने वाली घटना थी। परंतु सरकार अब भी हिली नहीं है। वही भाषण चल रहे हैं। अब तो पुलिस अधिकारी भी भाषण देने लगे हैं। वक्त हाथ से निकल जाने के पहले सरकार को सजग होने की जरूरत है। खुफिया तंत्र मजबूत किया जाये, उन्हें आवश्यक उपकरण मुहैया कराये जायें और आतंकवादियों के साथ कठोरता से पेश आया जाये। सरकार के पास बड़ी ताकत होती है लेकिन उसके बावजूद अगर वह केंचुए की तरह रेंगती नजर आती है, तो देश के लिए यह अपशकुन जैसा ही होगा।
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chintan
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