शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

क्रूरता की कोई पराकाष्ठा तो होगी

बचपन में आप ने भी सुना होगा। बड़े-बूढ़े अक्सर कहते सुने जाते हैं-सर्वेगुणा कांचनमाश्रयन्ती यानि सारे गुण कंचन में आश्रय ग्रहण करते हैं। जिसके पास धन-संपदा है, उसका समाज सम्मान करता है, उसे सभी बड़ी कुर्सी देते हैं, उसकी प्रशंसा होती है। जो लोग उससे कुछ पाना चाहते हैं, वे चारणों की तरह उसके आगे-पीछे डोलते हैं। यह बात तो पुराने जमाने से चली आ रही है परंतु धन का लोभ आदमी को कितना निर्मम बना देता है, यह आज के युग में दिखायी पड़ रहा है। आदमी धन के लिए क्या-क्या कर सकता है, आप कल्पना नहीं कर सकते। धन-संपत्ति के लिए किसी की भी हत्या कर देना मामूली बात हो गयी है, लोग अपने सगे-संबंधियों को भी नहीं छोड़ते हैं।

परंतु जो काम उत्तर प्रदेश के सीआरपीएफ के कुछ सिपाही कर रहे थे, वह तो अत्यंत घृणास्पद है, अस्वीकार्य और शर्मनाक है। अभी दांतेवाड़ा में इसी सीआरपीएफ के 76 बहादुर जवान नक्सलियों की गोलियों से शहीद हो गये। उनकी मांएं, उनके बच्चे, उनकी पत्नियां अब कभी उन चेहरों को नहीं देख पायेंगी, उन्हें पूरे जीवन उनकी कमी खलती रहेगी। उन्हें नक्सली अपराधियों के दुर्दान्त कारनामे हमेशा दर्द देते रहेंगे। इन परिवारों की अंतहीन पीड़ा में थोड़ी देर के लिए भले ही पूरा देश शामिल हुआ हो, भले ही हमारी, आप की आंखें इन बिलखते परिवारों की त्रासदी से द्रवित हो उठीं हों, पर कठोर सच यह है कि कभी खत्म न होने वाले दर्द के साथ तो उन परिवारों को ही जीना पड़ेगा, जिनके बच्चों ने समाज और देश की सुरक्षा के लिए कुर्बानी दे दी।

इन घरों में छोटे बच्चों का बचपन छिन गया होगा। वे उदास और गुमसुम होकर दिल को इस छलनी कर देने वाली याद के साथ अपनी राह पर बढ़ेंगे, कभी नहीं भूल पायेंगे कि उनके सिर से बाप का साया छीन लिया गया है। शहीदों के भाइयों को लगता रहेगा कि उनका एक बाजू कट गया है। जो बूढ़े होंगे, उनकी धीमी पड़ती सांसों में जिंदगी की निरर्थकता की घुटन समा गयी होगी। मांएं अब भी भूल जाती होंगी और दरवाजे पर आकर देखने लगती होंगी कि शायद उनके बच्चे लौट आयें। पगला गयी होंगी वो। पत्नियों की जिंदगियां पहाड़ हो गयी होंगी, कैसे ढोयेंगी वे इस वजनी अंधेरे को। सोचकर मन में आंसू के बादल घुमड़ने लगते हैं।

लेकिन जब किसी को यह पता चले कि इन शहीदों के जिस्म उन्हीं गोलियों से छलनी हुए होंगे, जो इनके ही सहकर्मियों ने सरकारी शस्त्रागारों से चुराकर चंद सिक्कों के बदले नक्सलियों को सौंपे थे, तो कठोर से कठोर व्यक्ति का मर्म भी विगलित हो उठेगा। आह, अपने ही हाथों से भाइयों के कत्ल जैसा है यह। अपने ही घरवालों की जिंदगी कसाइयों के हाथ बेचने जैसा है यह। यूपी की राजधानी लखनऊ में सीआरपीएफ के आधा दर्जन जवान पकड़े गये हैं, जो सरकारी कारतूस, बारूद और बंदूकें माओवादी हत्यारों को बेच रहे थे। यह काम अरसे से चल रहा था। इनका रैकेट प्रदेश के कई जिलों में फैला हुआ था। उन सबको पकड़ने के लिए तेजी से कार्रवाई चल रही है। जिनसे देश लड़ रहा है, उन्हें हथियार मुहैया कराने वाले ये सरकारी मुलाजिम माओवादियों से भी क्रूर और भयानक हैं। ऐसे लोगों को हमारे समाज में जीने के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए। तुरंत, बिना देर किये। अदालत जो करे पर जनता से पूछिये, उसका जवाब यही होगा, इन्हें फांसी पर लटका दो।

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